प्रयागराज, 8 मार्च (एजेंसी)
भारत में अपनी तरह के इकलौते नारियल के पेड़ ‘लोडोसिया मालदीविका’ पर 126 साल बाद पहली बार फल आया है। इस पेड़ पर दो दरियाई नारियल लगे हैं, जिन्हें हाल ही में तोड़कर सुरक्षित रख लिया गया है। एक फल का वजह 8.5 किलोग्राम है, जबकि दूसरे फल का वजन 18 किलोग्राम है। इसे ‘डबल कोकोनट’ भी कहते हैं।
यहां स्थित भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (बीएसआई) के वैज्ञानिक डाॅक्टर शिव कुमार ने बताया कि पश्चिम बंगाल के हावड़ा स्थित आचार्य जगदीशचंद्र बोस इंडियन बोटैनिक गार्डन में 1894 में इसका पौधा सेशेल्स से लाकर लगाया गया था जिसमें 2006 में फूल आने पर पता चला कि यह मादा फूल है। परागण के लिए 2006 में श्रीलंका के पेरिडीनिया गार्डन से पराग लाया गया, लेकिन इसमें सफलता 2013 में तब मिली जब थाईलैंड से लाए गए पराग से परागण की प्रक्रिया की गयी। शिव कुमार ने बताया कि मालदीव में इस फल को स्टेटस सिंबल के तौर पर देखा जाता है, लेकिन भारत की जलवायु में इसे विकसित करना भारतीय वैज्ञानिकों की एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।
उम्र एक हजार साल
यह वृक्ष मूल रूप से सेशेल्स में पाया जाता है। हावड़ा के बोटैनिक गार्डन में इसके और पौधे लगाने के लिए भारत में सेशेल्स के उच्चायुक्त टी. सेल्बी पिल्लै के साथ 21 अक्तूबर 2019 को एक बैठक की गई थी और पिल्लै ने 21 नवंबर को हावड़ा आकर यह वृक्ष देखा था। सेशेल्स के 115 द्वीपों में से केवल 2 द्वीपों पर ही यह वृक्ष पाया जाता है और इसकी अनुमानित आयु लगभग 1000 वर्ष की है। पोषक तत्वों से भरपूर और यौन शक्तिवर्धक होने की वजह से इसे समय से पहले ही तोड़ लिया जाता है जिससे यह विलुप्त होने के कगार पर है।
10 साल में बनता है फूल
इसमें फूल फल बनने में 10 वर्ष का समय लगता है। यदि दरियाई नारियल का बीज स्वस्थ रहा तो इसे अंकुरित कराया जा सकेगा, जिसमें 10 वर्ष तक का समय लग सकता है, क्योंकि इसकी सुषुप्तावस्था ही 10 वर्ष है। इसके बाद ही इसे अंकुरित कराया जा सकता है। अंकुरण में एक वर्ष का समय लगता है। उल्लेखनीय है कि 2019 के प्रयागराज कुम्भ मेले में दरियाई नारियल का बीज प्रदर्शित किया गया था, जो दुनिया का सबसे बड़ा बीज है।

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