आर्थिक-सामरिक मोर्चे पर तैयारी जरूरी
रमेश नैयर
भारत की चौतरफा घेराबंदी के लिए चल रही रणनीति को भेदने के लिए भारत सही समय पर सक्रिय हो गया है। हमारे बाजार में चीनी उत्पादों के आयात पर बड़ा अंकुश लगाया गया है। इस पर अमल शुरू हो गया है। सोशल मीडिया के अघोषित सम्राट ‘टिकटाक’ पर भारत ने प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार के फैसले सही हैं, फिर भी उनकी सफलता के लिए जन-सहयोग और कुछ वैसी ही चेतना जरूरी है, जो ब्रिटिश राज के दौरान विदेशी उत्पादों की होली जलाने और उनके पूर्ण बहिष्कार की सफलता के लिए पनपी थी।
यह तथ्य भी सामने आया है कि चीन चुपचाप काफी समय से भारत की सामरिक घेराबंदी में जुटा हुआ था। दिसम्बर, 1962 में चीन ने हिन्दी-चीनी भाई-भाई के सुखद परिवेश के दौरान आकस्मिक हमला करके भारत के अक्साई चिन के 40 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर बलात कब्जा कर लिया था। उसके बाद भारत ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी।
सुखद यह भी है कि भारत ने समय रहते भांप लिया कि चीन उसकी सामरिक घेराबंदी में जुटा हुआ है। पाकिस्तान तो मुद्दत से चीन का पिट्ठू बना हुआ है। पहले पाकिस्तान की पूरी निर्भरता अमेरिका पर रहती आई थी। परंतु 1965 और फिर 1971 में भारत पर किए गये हमले में उसे जिस तरह मुंह की खानी पड़ी, उससे हताश होकर इस्लामाबाद ने चीन की शरण में जाना मुनासिब समझा।
चीन कितना ही ताकतवर हो लेकिन भारत भी अब 1962 की तरह दीन-हीन नहीं रह गया है। विश्व बिरादरी में भारत एक महाशक्ति बनने की राह पर है। इस बीच चीन ने भारत के कुछ मित्र देशों पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। हाल ही में उसने ईरान के साथ कुछ करार किए हैं। आतंक को शह देने में सक्रिय पाकिस्तान पूरी तरह चीन की शरण में जा चुका है। भारत संगीन होते हालात से अनजान नहीं है। अमेरिका भी चीन की हसरतों पर पैनी नज़र रखे हुए है। वह भारत की मदद के लिए भी तैयार मालूम होता है। भारत को इस समय महाशक्ति अमेरिका की मदद की जरूरत भी है, फिर भी वह अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति को बनाए रखने के प्रयास कर रहा है। अपने परीक्षित मित्र रूस से भारत रिश्तों को कमजोर नहीं होने देना चाहता। पिछले दिनों रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी तीन दिन की मास्को यात्रा के दौरान रूसी उपप्रधानमंत्री यूरी बोरिसोव से मुलाकात की जो सार्थक रही। रूस ने भारत को शीघ्र ही एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की सप्लाई करने का संकेत दिया। यह मिसाइल एफ-35 जैसे संहारक सामरिक विमान को भी नष्ट कर सकता है।
इन स्थितियों में भारत के लिए अमेरिका से सामरिक सहयोग और मैत्री की जरूरत बढ़ गई है। स्वयं अमेरिका भी इसके लिए तैयार मालूम हो रहा है। दक्षिण चीन सागर में अमेरिका ने भारत की मदद करने और चीन को सबक सिखाने की तत्परता दिखाई है। दक्षिण चीन सागर में अमेरिका के दावे को चीन द्वारा खारिज किए जाने से दोनों महाशक्तियों में कटुता बढ़ी है।
इस बीच अमेरिका ने हांगकांग पर थोपे विवादास्पद कानून को नामंजूर करके चीन को एक बड़ा झटका दिया है। चीन सदा हांगकांग पर दावा करता रहा है, जबकि अमेरिका ने दो टूक कह दिया है कि वह एक स्वायत्त देश है। फिर चीन ने सीधे टकराने के बजाय अपने छोटे सहयोगियों को भारत के खिलाफ उकसाने का जाल बुना। सदियों से भारत का आत्मीय मित्र रहा नेपाल उसके झांसे में आ गया। चीन से प्रभावित नेपाल की मार्क्सवादी सरकार ने लिपुलेख और कालापानी को अपने देश का हिस्सा बता कर जो सीमा विवाद खड़ा किया है, उससे नेपाली जनता का एक वर्ग भी सहमत नहीं है।
इस सीमा विवाद के अंकुर तब निकले जब भारत ने चीनियों की घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर एक सड़क के निर्माण का निर्णय लिया। मार्च, 2020 के आरंभ में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जब उस सड़क का उद्घाटन किया, तब तक सब ठीक-ठाक था। उसके बाद अचानक नेपाल सरकार ने सीमा विवाद खड़ा कर दिया। समझा जाता है ऐसा नेपाल ने चीन के उकसावे पर किया। अगले वर्ष तक पाकिस्तान को परिष्कृत डीजल-इलेक्टि्रक से चलित पनडुब्बियां चीन से मिल सकती हैं। फिर भी इन सबसे पार पाने की क्षमता भारत ने पहले ही हासिल कर ली है।
जहां तक युद्ध में संहारक आयुध हासिल करने का सवाल है, भारत के पास मौजूदा हालात में भरोसेमंद महाशिक्त अमेरिका उपलब्ध है। भारत से सहयोग के लिए जापान, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस सहित अनेक शक्तिशाली यूरोपीय देश तैयार है। हाल ही में अमेरिकी विदेश सचिव माइक पोम्पियो ने खुल कर भारत की विश्वसनीयता और सामरिक क्षमता की तारीफ की। वस्तुस्थिति यह है कि चीन के खाते में भारत के इकतरफा आयात से जो भारी-भरकम विदेशी मुद्रा पहुंचती है, उसे अमेरिका और यूरोपीय देशों से परस्पर व्यापारिक रिश्ते बनाकर संतुलित किया जा सकता है।
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