ज्ञान सार
एक शिष्य साधु के आश्रम पर पहुंचा और साधु से शिष्य बनाने की प्रार्थना करने लगा। साधु ने उससे कहा कि आप बहुत बुद्धिमान हो, जो कुछ आप जानते हो उसे लिखकर मेरे पास लाओ ताकि मैं तुम्हंे वही ज्ञान दे सकूं जो तुम्हारे पास नहीं है। शिष्य ने लिखना आरंभ किया और तीन माह की अथक मेहनत के बाद पूरी पोथी लिख डाली। वह साधु के पास पहुंचा। साधु ने कहा इस पोथी का संक्षिप्त सारांश लिखकर लाओ ताकि मुझे पढ़ने में आसानी हो सके। शिष्य ने ज्ञान को हजारों पृष्ठों से समेट कर 100 पृष्ठों में लिख दिया। एक माह बाद फिर आश्रम पहुच गया। साधु बोला, मुझे यह पढ़ने में परेशानी हो रही है, इसीलिए इसे केवल एक वाक्य में लिखकर लाओ। शिष्य ने पृष्ठों का सार एक वाक्य में लिखा। अब साधु ने कहा, मैं बूढ़ा हो गया हूं, कभी भी मर सकता हूं। इस सार को और संक्षिप्त करके लाओ। शिष्य जल्दी से आश्रम के दूसरे कक्ष में गया और कुछ देर सोचने के बाद लौटकर उसने एक कोरा कागज साधु के चरणों में रख दिया। साधु अंतिम सांसें ले रहा था। वह शिष्य से बोला, ‘हां, अब तुम मेरे शिष्य बनने योग्य हो गए हो, परन्तु मैं अब रुक नहीं सकता। तुम्हारा गुरु तो नहीं बन सका लेकिन तुम्हें शिष्यत्व दे चला। यह कहकर साधु ने प्राण त्याग दिए।
प्रस्तुति : सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’

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