मजबूर मजदूर और चिंतित सरकार
सहीराम
पहली बार ऐसा मजदूर दिवस आया है जी, जब चारों तरफ चर्चा में कोरोना के बाद बस मजदूर ही हैं। रेलवे स्टेशनों पर घर जाने के लिए एकत्रित होते मजदूर। पुलिस से पिटते मजदूर। सड़कों पर पैदल अपने घर-गांव जाते मजदूर। रोटी-पानी के लिए बिलखते मजदूर। राशन के लिए भटकते मजदूर। सरकारों के सामने सवाल बनकर खड़े मजदूर। मजदूरों के सवालों से जूझती सरकार। मजदूरों के राशन-पानी का इंतजाम करती सरकार। मजदूरों के ठहरने की व्यवस्था करती सरकार। बताइए पहले कभी इतना मजदूर-मजदूर हुआ था? नहीं न? लेकिन अब मजदूर ही मजदूर है। हालांकि, अब थोड़ी-बहुत किसान ने भी उसके साथ जगह बनानी शुरू कर दी है। शुक्र है कि फसलों की कटाई का सीजन आ गया। फसलों को मंडी में ले जाने का सीजन आ गया। वरना भैया किसानों को कौन पूछने वाला था। और सच पूछो तो किसान अकेला कर भी क्या लेगा, जब तक उसके साथ मजदूर नहीं होगा।
तो अभी कोरोना के बाद चर्चा में चारों तरफ मजदूर ही मजदूर है। कब तक रहेगा, यह कहना मुश्किल है। पर कल किसने देखा है! वरना पहली मई को मजदूर दिवस तो हर साल ही आता है, पर ट्रेड यूनियनों के अलावा बताओ कौन मजदूरों को याद करता था। खुद मजदूर अपने को याद नहीं करते थे। उन्हें भी याद ही दिलाना पड़ता था कि भैया आज तुम्हारा ही दिन है। टीवी के चैनलों पर तो खैर मजदूरों को याद करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। किसान-मजदूर वहां बहिष्कृत जीव है। खेती, किसानी, मजदूरी वहां ब्लैक लिस्टिड विषय हैं। इनके बारे में तो वे तब सोचें न जब हिंदू-मुसलमान की डिबेट खत्म हो। कोरोना ने चाहे दुनिया को हिला दिया हो, पर टीवी चैनलों से हिंदू-मुसलमान की डिबेट को हिलाने में वह भी कामयाब नहीं हुआ। तो टीवी चैनलों पर तो खैर मजदूरों को याद करने का सवाल ही पैदा नहीं होता था, अखबारों में भी या तो मई दिवस के दिन मजदूरी में खटते मजदूरों की कोई तस्वीर छाप दी जाती थी या फिर दूसरे दिन ट्रेड यूनियनों की किसी मीटिंग, किसी रैली की छोटी-सी खबर चौथे-पांचवें पेज पर नजर आ जाती थी।
लेकिन इस मजदूर दिवस पर हर तरफ मजदूर ही मजदूर था। जिधर देखो उधर मजदूर। सरकारें थीं कि मजदूरों की चिंता में दुबली हुई जा रही थीं। लग रहा था जैसे उन्हें कोरोना की उतनी चिंता नहीं, जितनी मजदूरों की है। मजदूरों को अपनी मजदूरी की उतनी चिंता नहीं, जितनी चिंता सरकारों को उसकी मजदूरी की है। सरकारें कह रही हैं—अब मजदूर जहां चाहें जा सकते हैं। वे कहां जाएं? न मजदूरों को पता है, न सरकारों को पता है। पर देखो जी, ऐसा मजदूर दिवस पहले कभी नहीं आया होगा।
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