एकदा
असली दान
एक शिष्य ने गुरु से पूछा, ‘क्या धन का दान ही सबसे श्रेष्ठ दान है क्योंकि धन से आदमी सारी वस्तुएं खरीद सकता है।’ गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘दान को धन तक ही सीमित कर दिया है, मात्र धन का दान ही दान नहीं है, धन का दान तो दान की सबसे निम्न श्रेणी है। असली दान तो जीवन को बांटना है। जीवन को बांटना यानी दूसरों को ख़ुशी बांटो, प्यार बांटो, आनन्द बांटो, ये दान हैं। किसी का दर्द कम हो सके, ऐसा किया जाना दान है। किसी के सुख में शामिल हो, किसी के दुख के हिस्सेदार बने, किसी के दुख में दो आंसू गिराये, ये दान हैं। किसी की ख़ुशियों में शामिल होकर नाचे, ये दान है, जीवन को बांटना ही असली दान है।
प्रस्तुति : सुभाष बुड़ावनवाला
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