खोये रोजगार के मौके बहाल करना हो लक्ष्य
हाल ही में प्रकाशित विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों में यह बात उभरकर सामने आ रही है कि कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भी दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर जल्द आएगी और कोविड-19 के बीच खोए हुए रोजगार अवसर वापस लौटने की संभावनाएं होंगी। रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि आगामी वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की विकास दर में वृद्धि होगी व भारत की कौशल प्रशिक्षित नई पीढ़ी के लिए देश और दुनिया में रोजगार के मौके बढ़ने की संभावनाएं होगी।
वास्तव में कोविड-19 की चुनौतियों के बीच देश में रोजगार अवसरों की संभावनाओं को मुट्ठियों में करने के लिए चार बातों पर ध्यान देना होगा। एक, देश में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रणनीति से उद्योग-कारोबार में रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएं। दो, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) की मुश्किलों को दूर करके रोजगार के खोये हुए मौके वापस लाए जाएं। तीन, श्रम आधारित विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार बढ़ाया जाए। चार, कौशल प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार के मौके उपलब्ध कराए जाएं। पांच, सरकारी नौकरियों में रिक्त पद भरे जाएं।
नि:संदेह देश के उद्योग-कारोबार सेक्टर को कम ब्याज दर पर ऋण एवं वित्तीय सुविधा तथा जीएसटी संबंधी रियायत जैसे विभिन्न प्रोत्साहन और सुविधाएं देकर इस क्षेत्र में रोजगार मौके बढ़ाए जा सकते हैं। हाल ही में न्यूयार्क के मैनपॉवर ग्रुप द्वारा प्रकाशित 44 देशों के रोजगार के वैश्विक सर्वेक्षण के मुताबिक कोविड-19 के बीच रोजगार के मामले में सकारात्मक परिवेश दिखाने वाले दुनिया के चार शीर्ष देशों में भारत भी शामिल है। भारत के अलावा केवल जापान, चीन और ताइवान में रोजगार को लेकर सकारात्मक परिदृश्य पाया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि निकट भविष्य में कोरोना काल के बीच भारत में पांच सेक्टरों माइनिंग, कंस्ट्रक्शन, फाइनेंस, इंश्योरेंस और रियल एस्टेट में नौकरियों के नए रास्ते खुलेंगे।
इसी तरह प्रमुख मानव संसाधन कंपनी टीमलीज की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश के चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को छोड़कर मेट्रो के रूप में उभरते शहरों में बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद, चंडीगढ़, कोच्चि, कोयम्बटूर, आदि में हेल्थकेयर इंडस्ट्री, फार्मा सेक्टर, ई-कॉमर्स, एफएमसीजी और रिटेल कम्युनिकेशन कृषि, एग्रोकेमिकल्स, आटोमोबाइल्स और उससे जुड़ी सेवाएं, बीपीओ सेवाएं, निर्माण तथा रिएल एस्टेट और एनर्जी क्षेत्र में रोजगार के मौके बढ़ेंगे।
ज्ञातव्य है कि करीब 6.30 करोड़ से अधिक विशाल संख्या वाले तथा 12 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देने वाले एमएसएमई सेक्टर से कोविड-19 के बीच बड़े पैमाने पर नौकरियां खत्म हुई हैं। यद्यपि इस सेक्टर को बचाने के लिए सरकार द्वारा 13 मई, 2020 को 3 लाख 70 हजार करोड़ रु. के अभूतपूर्व राहतकारी प्रावधान घोषित किए गए हैं। लेकिन ऐसी राहतों के लिए उपयुक्त क्रियान्वयन न होने के कारण एमएसएमई गंभीर चुनौतियों के दौर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।
स्थिति यह है कि इस समय देश के कोने-कोने में बड़ी संख्या में एमएसएमई की इकाइयां वित्त की परेशानी के कारण बंद पड़ी हैं। अधिकांश बैंक ऋण डूबने की आशंका के मद्देनजर ऋण देने में उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। स्थिति यह है कि एमएसएमई को जुलाई, 2020 के पहले सप्ताह तक करीब 61 हजार करोड़ रु. ही ऋण के रूप में वितरित किया जा सके हैं। एमएसएमई की केंद्र सरकार, विभिन्न केंद्रीय विभागों तथा राज्य सरकारों के पास जो बकाया धनराशि है, उसका भुगतान एमएसएमई को नहीं हो पा रहा है। ऐसे में एमएसएमई में पूर्व में कार्यरत श्रमिक रोजगार के लिए वापस नहीं लौट पा रहे हैं।
नि:संदेह कोविड-19 की वजह से पैदा हुए रोजगार संकट को दूर करने के लिए सरकार द्वारा बड़े स्तर पर रोजगार पैदा कर सकने वाली परियोजनाओं के बारे में नए सिरे से सोचने की जरूरत है। नौकरियों एवं आय में चौतरफा गिरावट को देखते हुए ऐसी परियोजनाओं से रोजगार सृजन की दर बढ़ाई जा सकेगी। इसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के प्रभावी क्रियान्वयन के साथ इसका दायरा बढ़ाने और शहरी क्षेत्रों के लिए भी रोजगार अवसरों में वृद्धि करने वाली लोक निर्माण परियोजनाएं जरूरी हैं। 1930 की महा आर्थिक मंदी के समय अर्थशास्त्री किंस ने मंदी का अर्थशास्त्र प्रस्तुत करते हुए लोक निर्माण कार्यों को रोजगार एवं आय बढ़ाने का महत्वपूर्ण आधार बताया था। इसी तरह 1933 से 1938 के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट के द्वारा चलाए गए इतिहास प्रसिद्ध न्यू डील कार्यक्रम का मकसद भी आर्थिक मंदी के संकट में लोक निर्माण परियोजनाओं के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देना था।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि 1970 के दशक में भीषण अकाल के समय जब महाराष्ट्र की अधिकांश ग्रामीण आबादी गरीबी की स्थिति में पहुंच गई थी, उस समय महाराष्ट्र में शुरू की गई ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना रोजगार देकर गरीबी दूर करने में महत्वपूर्ण सिद्ध हुई थी। नि:संदेह राष्ट्रीय एवं स्थानीय दोनों ही स्तरों पर लोक निर्माण कार्यक्रम इस कोरोना मंदी के समय जरूरी हो गए हैं। ऐसे में केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा बुनियादी ढांचे से संबंधित विभिन्न परियोजनाएं प्राथमिकता से शुरू करके रोजगार अवसर बढ़ाए जा सकते हैं।
इसी परिप्रेक्ष्य में लोक निर्माण परियोजनाओं के माध्यम से रोजगार देने के लिए 26 जून को उत्तर प्रदेश सरकार भी आगे बढ़ी है। ‘आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान’ के जरिए करीब सवा करोड़ लोगों को विभिन्न परियोजनाओं में रोजगार देना सुनिश्चित किया गया है। देश के विभिन्न राज्यों में भी रोजगार अवसरों के निर्माण के लिए ऐसे अभियानों की जरूरत दिखाई दे रही है।
इस समय देश में कौशल प्रशिक्षित युवाओं की मुट्ठियों में रोजगार के मौके बढ़ाने भी जरूरी हैं। देश में पिछले पांच वर्षों में कौशल विकास कार्यक्रम के तहत जिन युवाओं को कौशल प्रशिक्षित किया गया है, उन्हें रोजगार दिलाने के लिए सरकार द्वारा उद्योग-कारोबार के साथ समन्वय स्थापित किया जाना होगा। साथ ही कौशल प्रशिक्षण का अभियान भी बढ़ाया जाना होगा। गौरतलब है कि 15 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व युवा कौशल दिवस और ‘कौशल भारत’ मिशन की पांचवीं वर्षगांठ के अवसर पर कहा कि स्थानीय एवं वैश्विक दोनों ही स्तरों पर भारतीय कौशल प्रशिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के मौके बढ़ गए हैं। ऐसे में इन मौकों को मुट्ठियों में करने के लिए रोजगार की नई जरूरतों के मुताबिक प्रासंगिक बने रहना जरूरी है। इसके साथ-साथ नई पीढ़ी में रोजगार मौके बढ़ाने के लिए यह भी जरूरी है कि सरकारी विभागों में रिक्त पदों पर तत्परता के साथ नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की जाए। सरकार ने विगत 14 मार्च को संसद में बताया है कि रेलवे, रक्षा, डाक सहित अन्य सरकारी विभागों में करीब 4.76 लाख भर्तियां की जानी हैं। इनमें से यूपीएससी, एसएससी और रेलवे भर्ती बोर्ड के जरिए 1.34 लाख और रक्षा विभाग में 3.4 लाख खाली पदों को भरा जाना है।
उम्मीद है कि कोविड-19 की चुनौतियों के बीच एक ओर सरकार खोए हुए रोजगार मौकों को वापस लाने के लिए प्रयास करेगी, वहीं दूसरी ओर देश में रोजगार मौके बढ़ाने के लिए भी हरसंभव प्रयास करेगी।
लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।
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