संकट में मौका
मेक इन इंडिया को सिरे चढ़ाने की कोशिश
वैश्विक महामारी के कहर के दौर में चीन की साख को लगे बट्टे के बाद देश छोड़कर जा रही कंपनियों को भारत लाने की मुहिम मोदी सरकार ने तेज कर दी है। दरअसल, सरकार इस संकटकाल को अवसर में बदलने की कवायद में जुटी है। केवल केंद्र सरकार ही नहीं, उ.प्र. की योगी सरकार भी विदेशी कंपनियों से संपर्क साधकर लाल कालीन बिछाने को आतुर है। बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री ने उद्योग व वाणिज्य मंत्रियों आदि के साथ कई महत्वपूर्ण बैठकों में विदेशी निवेश को आकर्षित तथा स्वदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के मकसद से रणनीतियां बनाने पर विचार किया। सरकार की कोशिश है कि सिंगल विंडो सिस्टम के जरिये विदेशी कंपनियों के लिए भूमि व औद्योगिक ढांचे की स्थापना में आने वाली बाधा को दूर करने का प्रयास किया जाये। नि:संदेह यदि सरकार की कोशिशें सिरे चढ़ती हैं तो लॉकडाउन के चलते मुर्झायी अर्थव्यवस्था में प्राणवायु का संचार होगा। साथ ही बेरोजगारी की ऊंची दर से जूझ रहे देश को किसी हद तक रोजगार के बेहतर विकल्प मिल सकेंगे। दरअसल, कोरोना वायरस के प्रसार में चीन सरकार की संदिग्ध भूमिका के बाद पश्चिमी जगत में चीन को सबक सिखाने की कोशिशें अंदर ही अंदर शुरू हो गई हैं, जिसने एक तरह से छद्म व्यापारिक युद्ध का रूप ले लिया। बताया जाता है चीन से अपना कारोबार समेटने की कोशिश में लगी करीब एक हजार कंपनियों ने भारत से संपर्क साधा है। भारतीय नीति-नियंता इन चुनौतियों को अपने लिये एक सुनहरे अवसर के रूप में देख रहे हैं। भारत को प्राथमिकता देेने के मूल में एक बड़ी वजह यहां दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी व सस्ते श्रम का होना है। वहीं भारत में प्रशिक्षित व अंग्रेजी भाषी युवाओं की भी बड़ी तादाद है। विदेशी कंपनियां भारत में चीन के विकल्प के रूप में नई संभावना तलाश रही हैं।
दरअसल, केंद्र ही नहीं, प्रदेश सरकारें भी इस दिशा में खासी सक्रिय हैं। पिछले दिनों उ.प्र. के मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि प्रदेश सरकार चीन से मोहभंग होने वाली कंपनियों को विशेष सुविधाएं देने पर विचार कर रही है। प्रदेश सरकार ने यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम के तत्वावधान में अमेरिकी कंपनियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये नई संभावना पर चर्चा की है। ये वे कंपनियां हैं जिन्होंने चीन में बड़ा निवेश किया है और चीन से अपना कारोबार समेटने की तैयारी में हैं। ये कंपनियां रक्षा, औषधि, खाद्य प्रसंस्करण व इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में काम कर रही हैं। हालिया बैठकों में प्रधानमंत्री ने विभिन्न विभागों से कहा कि औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के मार्ग में आने वाली किसी भी बाधा को तुरंत दूर करने के लिए समयबद्ध तरीके से ठोस कदम उठायें, जिसमें बुनियादी ढांचे को उत्पादन के अनुकूल बनाने पर बल दिया गया। केंद्र सरकार कोरोना संकट के विश्वव्यापी प्रभाव से उपजे संकट पर पैनी नजर रखे हुए है। पिछले दिनों भारतीय कंपनियों को टेकओवर से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने एफडीआई नियमों में बड़ा बदलाव किया था, जिसको लेकर चीन ने आपत्ति भी जतायी थी। दरअसल, सरकार ने मौजूदा दौर में अवमूल्यन की शिकार भारतीय कंपनियों को संरक्षण देने के लिए यह कदम उठाया था। हालांकि, केंद्र सरकार ने कोरोना संकट पर काबू पाने के लिए लॉकडाउन 17 मई तक बढ़ा दिया है, मगर उसकी कोशिश है कि देश की अर्थव्यवस्था की धमनियों में रक्त-प्रवाह निरंतर जारी रहे। यही वजह है कि इस दौरान ग्रीन और ऑरेन्ज ज़ोन में शर्तों के साथ और छूट दी गई है। राज्य सरकारें भी लॉकडाउन के चलते अर्थव्यवस्था को लगे झटके से उबरने के प्रयास में जुटी हैं। इसी क्रम में हरियाणा सरकार ने बस के किराये बढ़ाने के साथ ही पेट्रोल-डीजल पर कोरोना सेस लगाया है और मार्केट फीस में वृद्धि की है। नि:संदेह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ऐसे कदम समय की मांग है।
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