खाना व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता है। बिना भोजन किए व्यक्ति एक दिन भी नहीं रह सकता। जहां कुछ लोग जीने के लिए खाते हैं तो कुछ लोग खाने के लिए ही जीते हैं। कभी भी बिना सोचे समझे खूब सारा स्नैक्स, चॉकलेट या मीठा खा लेना। या फिर कभी भी परेशान होने पर या फिर गुस्सा शांत करने के लिए खाना। अगर आप भी ऐसा करते हैं तो समझ लीजिए कि आप इमोशनल ईटिंग के शिकार हैं। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में-

  • इमोशनल ईटिंग का अर्थ है कि जब व्यक्ति अपनी नकारात्मक भावनाओं को शांत करने के लिए खाने का सहारा लेता है। ऐसा करने से नकारात्मक और परेशान करने वाले विचारों और भावनाओं जिसमें गुस्सा, डर, थकान शामिल है, को दबाती है। इस स्थिति में हम प्रतिकूल स्थिति से बाहर निकलने की अस्थायी कोशिश करते हैं। इससे कुछ समय के लिए भले ही व्यक्ति खुद को शांत कर ले लेकिन ऐसा करने से उसकी समस्या खत्म नहीं होती लेकिन भोजन पर उसकी भावनात्मक निर्भरता बढ़ती चली जाती है।
  • करियर, रिलेशनशिप, परिवार या हेल्थ से जुड़ी भावनात्मक परेशानियों के कारण हो सकता है कि लोग बहुत अधिक खाना शुरू कर दें. जो हमें ओवरइटिंग, वजन बढ़ने जैसी बीमारियों को बढ़ावा देता है। यहां यह समझना जरूरी है कि ये अक्सर अनजाने में शुरू होता है। ऐसा होता है कि आपका पेट भर गया हो फिर भी आप खाना चाह रहे हों या हो सकता है कि फिल्म देखने के दौरान आप खूब सारा खा लें, लेकिन आपको पता ही न चले कि आप कितना खा चुके हैं। हम इमोशनल ईटिंग में अक्सर इसलिए शामिल हो जाते हैं क्योंकि खाने को एक सांत्वना के रूप में देखते हैं। लोग चॉकलेट बार या आइसक्रीम टब को अपनी परेशानियों से उभरने का एक जरिया समझने लगते हैं।
  • ये तरीका हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है। दुविधा यह भी है कि जब किसी को अपने शरीर से नफरत या घृणा हो जाती है, तो वो भी इमोशनल ईटिंग की तरफ बढ़ जाता है क्योंकि वह उस चीज का सामना नहीं करना चाहते या वह ऐसे कदम नहीं उठाना चाहता है, जिससे उसके मन में आए नकारात्मक विचार खत्म हो जाएं।
  • इमोशनल ईटिंग का भूख से कुछ लेना-देना नहीं होता। यह भूख नहीं है, जिसके कारण लोग खाते हैं बल्कि यह खाने की लालसा या क्रेविंग है, जो आपको अस्थायी रूप से अच्छा महसूस कराती है और आपको इसकी आदत पड़ जाती है। ऐसा हमारे शरीर में शुगर रिलीज होने के कारण होता है। यही वजह है कि हम बिना सोचे-समझे खाने लगते हैं।

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