सुमन सैनी

बचपन की कुछ यादें ऐसी हैं जो हमेशा याद रहती हैं और हमें कुछ न कुछ जरूर सिखा जाती हैं। आज भी मुझे याद है जब मेरा दाखिला पापा ने यू-केजी के बाद गांव के सरकारी स्कूल में करवा दिया था। मेरे लिए वहां सब कुछ नया था। जैसे-तैसे मेरा पहला दिन स्कूल में निकल गया। दूसरे दिन मैंने देखा कि एक घंटी खाली थी तो मेरे एक अध्यापक हमारी क्लास में आए और सभी लड़कियों को कक्षा से बाहर ले गए। सभी बच्चों को बोला कि सब आज एक-एक पौधा जरूर लगाएंगे। रोज लगाए गए पौधे में पानी भी डालना और देखभाल भी करनी है। मैं मन ही मन सोचती रही कि कैसे अध्यापक हैं ये जो छोटे-छोटे बच्चों से काम करवा रहे हैं। मैंने भी सर की डांट से बचने के लिए एक पौधा लगा दिया और इस काम से पीछा छुड़ा लिया। फिर सभी बच्चे रोज अपने-अपने पौधे को पानी देते लेकिन कक्षा में कुछ बच्चे मेरे जैसे भी थे जो इस काम को बोझ समझते थे। पौधों में पानी डालने पर रोज बच्चों को कभी पैन, पैंसिल, रबड़ इत्यादि सामान मिलता था। मैं भी लालच में रोज अपने लगाए पौधे में पानी देना और देखभाल करने लगी। जब मैं बड़ी हुई तब समझ आया कि पेड़-पौधों का हमारे जीवन में कितना महत्व है। कैसे हम अपने फायदे के लिए दिन-प्रतिदिन पेड़ों को काट रहे हैं। आने वाले समय में न जाने किन-किन पर्यावरण संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ेगा। तब से मैंने प्रण लिया कि जब भी घर में कोई शुभ अवसर या जन्मदिन हो तो कम से कम 2 पौधे जरूर लगाए जाएंगे।
घर में छोटे बच्चों को गिफ्ट के साथ एक पौधा दिया जाता है ताकि बचपन से ही बच्चे पर्यावरण के प्रति जागरूक हो सकें।
मेरे अध्यापक की ये बात आज मेरे लिए सीख बन गयी और पौधे लगाना हमारे घर में एक रस्म बन गया है।

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