आखिर कौन है आयशा चौधरी, जिन पर आधारित है फिल्म ‘द स्काइ इज पिंक’

प्रियंका चोपड़ा, फरहान अख्तर स्टारर फिल्म द स्काइ इज पिंक का हाल ही के दिनों में यूट्यूब पर ट्रेलर लॉंच कर दिया गया है।फिल्म में जायरा वसीम भी मुख्य भूमिका में नजर आएँगी। इस फिल्म की शूटिंग पूरी हो चुकी है और जल्द ही इसे बड़े पर्दे पर उतारने की तैयारी चल रही है। क्या आप जानते है? यह फिल्म एक भारतीय लड़की आयशा चौधरी की जिंदगी की सच्ची घटना पर आधारित है। आखिर वह कौन सी वजह थी जिस कारण आज आयशा चौधरी पर फिल्म बन रही है? आइए पढ़ते है विस्तार से –
आयशा का जन्म 1996 में गुरुग्राम में हुआ था। आयशा को एक अलग तरह की बीमारी थी, जिसे ऑटो इम्यून डिफिशिएंसी डिसऑर्डर के नाम से जाना जाता है। वह पैदा होने के साथ ही इस बीमारी से ग्रसित थी जिसकी वजह से उनका महज 6 महीने की उम्र में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करना पड़ गया था। लेकिन बोन मैरो ट्रांसप्लांट होने के वावजूद उनकी समस्या कम नहीं हुई। इस ट्रांसप्लांट के बाद आयशा को पल्मनरी फाइब्रोसिस नमक बीमारी हो गयी। इस बीमारी के कारण आयशा को सांस लेने में दिक्कतें आने लगी, क्यूंकी इस बीमारी के कारण आयशा के फेफड़ों में ऐसी कोशिकाएं पैदा होने लगी जिसके कारण आयशा ठीक तरीके से सांस नहीं ले पा रही थी। इन कोशिकाओं के पैदा होने से आयशा की त्वचा शख्त और मोटी हो गयी जिस कारण उनके फेफड़ों तक ऑक्सिजन को पहुँचने में दिक्कतें आने लगी। बेहद छोटी सी उम्र में आयशा मौत से जूझ रहीं थी। एक इंटरव्यू के दौरान आयशा की माँ ने बताया कि आयशा को पढ़ने और लिखने का बहुत शौक था इसलिए उन्होने आयशा का ध्यान कीताबों के तरफ लगाना चालू कर दिया। उनकी माँ बताती है कि यह 2014 कि बात है आयशा अपने बिस्तर पर थी तभी आयशा कि माँ ने आयशा को ह्यू प्राथर कि कीताब दी और आयशा ने जवाब दिया कि इस से अच्छा तो मैं लिख सकती हूँ।
महज 18 वर्ष कि आयु में आयशा एक प्रसिद्ध लेखिका बन गयी। आयशा ने ‘माय लिटिल एपिफैनीज’ नामक पुस्तक लिखी जिसे 2015 में जयपुर लिटरेरी फेस्ट में रिलीज किया गया था। परंतु वह अपनी सफलता को ज्यादा दिन देख ना सकी। दिन ब दिन आयशा के फेफड़ों में ऑक्सिजन कि मात्रा कम होने लगी। वर्ष 2014 में आयशा के फेफड़ों की ऑक्सिजन लेने की क्षमता 35 फीसदी थी, जो वर्ष 2015 में घटकर 20 फीसदी पर आ गयी। 24 जनवरी साल 2015 को आयशा की मृत्यु हो गयी। आयशा डर कर अपनी जिंदगी जीने वालों में से नहीं थी। वह देश के कोने-कोने में गयी। कितने ही मोटीवेशनल स्पीच दिए। वह सब जगह अपने साथ ऑक्सिजन ले कर जाती थी। आयशा का मानना था की अगर अपनी जिंदगी आप नहीं बादल सकते तो दूसरों की जिंदगी बदलने का प्रयास करो। उनका मानना था की मृत्यु तो एक न एक दिन सबको आनी है मैं बस खुश रहना चाहती हूँ।
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